आशीष खेतान भी छोड़ चले, ‘आप’ अब चाटुकारों का समूह! - Sushil Gangwar

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Saturday, 25 August 2018

आशीष खेतान भी छोड़ चले, ‘आप’ अब चाटुकारों का समूह!

Anurag Anant : अरविंद केजरीवाल ने सिद्ध कर दिया है, जनभावनाओं को वो अनाथ खेत मानते हैं और जब मन करता जोत लेते हैं, जब मन करता है। कुछ बो देते हैं, फसल काट लेते हैं, गाय-भैंस छोड़ देते हैं चरने के लिए। विकास की थोथी अभिधारणा रचने में लगे हुए बौनों आदमियों का समूह बन गयी है आप आदमी पार्टी।
विज्ञापन पर पूरा ध्यान है क्योंकि केजरीवाल को लगता है कि जनता कुछ नहीं होती सिर्फ़ अभिधारणा होती है। आप अपने पक्ष जितनी सकारात्मक अभिधारणा बनवा पाते हैं आप उतने सकारात्मक कहलाते हैं।
अरविंद केजरीवाल हज़ारों लोगों के सपनों, शहादतों और बलिदानों को खा कर डकार भी ना लेने वाली सर्व श्री लोकतांत्रिक नेता का नाम है। जिसने अपने तीन साल के सत्तावादी सफर में सुबह योगेंद्र यादव, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, आनंद कुमार, मयंक गांधी, मेधा पाटकर को खाया, दोपहर को कुमार विश्वास, कपिल मिश्रा को और शाम को आशुतोष और आशीष खेतान की तैयारी है।
अरविंद केजरीवाल
ये तो कुछ ही नाम है। केजरीवाल का पेट अजगरिवाल है। वो बहुतों को खा पचा सकते हैं। वो अन्ना, रामदेव का आंदोलन पचा गए। कुमार विश्वास की कविता पचा गए। किरण बेदी के नख़रे और शाजिया की अंग्रेजी पचा गए। और तो और, विनोद कुमार बिन्नी का ड्रामा पचा गए।
इनकी रीढ़ की हड्डी में बढ़िया वाला रबर भरा है। अरुण जेटली के सामने तन डोले-मन डोले हो लिए और बहाना बना दिया कि सरकार काम नहीं कर पा रही है। जो थोड़ा सा रेंग ही लिया तो क्या है। डोंट माइंड डीयर फूल पब्लिक! पर उनका क्या जो अपनी पढ़ाई, कमाई, सपने छोड़ कर अन्ना-केजरीवाल और रामदेव की नौटंकी में जगह-जगह गली-गली नाचे बलिदान दे बैठे, सब बर्बाद कर बैठे। एक हमारा जूनियर भी है। केजरीवाल ने उसके भी दो साल बर्बाद किये हैं और आज सर जी मुख्यमंत्री बन के बैठ गए हैं।
आखिरी में बात सीधी-सीधी! केजरीवाल भीतर से एक तानाशाह, व्यक्तिवादी, आत्मकेंद्रित व्यक्ति हैं। उन्होंने आम आदमी पार्टी को केजरीवाल चाटुकारों का समूह बना दिया है। उन्हें ना सुनने की आदत नहीं है। जो कह दिया वही सही है। केजरीवाल तुम जानते हो कि जनता बेवकूफ़ है पर तुम गलत जानते हो। आशीष खेतान चलिए बाहर आइये। बहुत दिन गुजार लिए। चलाने दीजिये। जी सर, यस सर वाली पार्टी।
केजरीवाल तुम ‘क्या’ से ‘क्या’ बन सकते थे।
केजरीवाल तुम ‘क्या’ से ‘क्या’ बन गए हो !!
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मैं अरविंद केजरीवाल के वैचारिक पक्ष, उनके वादे, पक्षधरता और राजनीतिक कटिबद्धता की बात कर रहा हूं जो किसी व्यक्ति की राजनीतिक चेतना का मूल होता है। मैं उनके कामों पर आलोचना करता तो अलग से करता, चेक करता क्योंकि इस समय सब परशेप्शन का खेल है मेरे भाई। 10 रुपये के काम को 15 रुपये ख़र्च करके जनता को 50 रुपये का काम दिखाया, बताया और जताया जा रहा है। केजरीवाल ने उन लोगों को ठिकाने लगा दिया जिन्होंने उफ़्फ़ किये बगैर अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। वे अब चुपचाप पार्टी से चले गए लेकिन मुख्यधारा की कीचड़ उछाल परंपरा का हिस्सा नहीं बने। केजरीवाल के वैचारिक पतन के बाद वो अपनी दुनिया में लौट गए।
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मेरी आलोचना केजरीवाल के उस दावे पर है जिसमे वो लाल बहादुर शास्त्री, भगत सिंह और गांधी की सियासत करने बढ़ाने का दावा करते थे पर आज अन्य पार्टियों और नेताओं जैसा या उससे भी संकुचित वितान के नेता हो गए हैं। दूसरी बात ये कि विकास तो अंग्रेजों ने भी किया, राजाओं ने भी, नवाबों ने और निज़ामों ने भी। ज़र्मनी का सबसे ज्यादा विकास तो हिटलर ने किया, तो क्या कहा जाए इन्हें? क्या इनका शासन वांछनीय है। नहीं ना? अतः मेरी आलोचना सिर्फ़ केजरीवाल के लोकतांत्रिक पतन को लेकर ही है।
युवा पत्रकार अनुराग अनंत की एफबी वॉल से.
Sabhar- Bhadas4media.com

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