विनोद अग्निहोत्री
वरिष्ठ पत्रकार ।।
कुलदीप नैयर केवल अंग्रेजी के पत्रकार ही नहीं थे, बल्कि वे भारतीय पत्रकारिता के पुरोधा थे। मूल रूप से उन्होंने एक उर्दू अखबार से पत्रकारिता की शुरुआत की थी, जोकि दरियागंज से संचालित होता था, लेकिन बाद में उन्होंने अंग्रेजी अखबरों की ओर अपना रुख कर लिया। उन्होंने कुछ समय तक अखबार बेचने का भी काम किया था। गांधीजी की हत्या की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों में से वे एक थे। इसके बाद उन्होंने लगातार जो पत्रकारिता में काम किया, वो अतुलनीय है। आजादी के दौर की पीढ़ी से लेकर के आज के दौर की भारतीय पत्रकारिता की वे एक निरंतर कड़ी थे, जो उनके निधन से आज टूट गई है।
जिस तरह से अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में एक लंबी पारी खेली, उसी तरह से पत्रकारिता में कुलदीप नैयर ने भी एक लंबी पारी खेली और उनका स्थान पत्रकारिता में भीष्म पितामह की तरह था। पत्रकारिता के साथ-साथ सामाजिक सरोकार के प्रति भी उनकी प्रतिबद्धता और समर्पण बिलकुल असंदिग्ध रहा। उन्होंने हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, देश की आजादी, मानवधिकार, लोकतंत्र इसके लिए हमेशा लड़ाई लड़ी और इमरजेंसी में वे जेल भी गए।
इसके अलावा प्रेस पर जब भी हमले करने की कोशिश हुई, फिर चाहे वह सरकार की तरफ से हुई हो, या फिर किसी और संस्था की तरफ से हुई हो, वे हमेशा मीडिया के साथ खड़े रहे। फिर चाहे वो राजीव गांधी के जमाने का मानहानी बिल हो, मानहानि विधेयक हो, या बिहार के मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथन मिश्रा द्वारा बिहार में लाया गया प्रेस बिल हो, इस तरह से तमाम मामलों में कुलदीप नैयर जी पत्रकारों की लड़ाई का नेतृत्व करते थे।
नैयर खुद लिखते थे भी थे और लिखवाते भी थे। जब वे इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन के संपादक रहे थे, तो उस दौर के अखबारों को पढ़कर ही हम लोगों ने पत्रकारिता और अंग्रेजी भाषा सीखी थी। भाषा के प्रति वे बहुत ही ध्यान रखते थे कि भाषा अच्छी होनी चाहिए, स्पष्ट होनी चाहिए और साथ ही साथ भाषा की गरिमा बनी रहनी चाहिए। करीब 85 अखबारों में वे विभिन्न भाषाओं में अपने कॉलम लिखते थे
Sabhar- Samachar4media.com
No comments:
Post a Comment